थर-थर काँपे गात
- Chirag Jain
- Dec, 10, 2021
- e-patrika
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ठण्डी ने ऐसा किया, थर-थर काँपे गात।
मुँह-नाक इंजन बने, छोड़ रहे हैं भाप।।
ठण्डा है मौसम बड़ा, ठण्डी-सी मुस्कान।
टोपी में ही सुख मिले, ढकती सिर औ’ कान।।
ठण्डी का मौसम बड़ा, ख़ूब बड़ा है नाम।
गर्म चाय देती बड़ा ठण्डी में आराम।।
पैसे वालों के लिये, है गर्मी और ठण्ड।
हरिया रोटी के लिये, रोज़ लड़ रहा जंग।।
शीत भगाने का चलो, राज़ बताया जाय।
देसी-घी में गुड़ पका, रोज़ खआया जाय।।
-अशोक मधुप
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