जाड़े की धूप
- Chirag Jain
- Dec, 04, 2021
- e-patrika, Sarveshwar Dayal Saxena
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बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
ताते जल नहा, पहन श्वेत वसन आयी
खुले लान बैठ गयी दमकती लुनाई
सूरज खरगोश धवल गोद उछल आया।
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
नभ के उद्यान-छत्र तले मेज; टीला,
पड़ा हरा फूल कढ़ा मेजपोश पीला,
वृक्ष खुली पुस्तक हर पृष्ठ फड़फड़ाया।
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
पैरों में मखमल की जूती-सी-क्यारी,
मेघ ऊन का गोला बुनती सुकुमारी,
डोलती सलाई हिलता जल लहराया।
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
बोली कुछ नहीं, एक कुर्सी की खाली,
हाथ बढ़ा छज्जे की साया सरका ली,
बाँह छुड़ा भागा, गिर बर्फ हुई छाया।
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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