बात अच्छी है
- Chirag Jain
- Oct, 06, 2021
- Ankit Kavyansh
- No Comments
तुम हमारे द्वार पर दीवा जलाना चाहते हो,
बात अच्छी है,मगर
उस दीप की बाती हमारे रक्त से ही क्यों सनी है!
कहीं ऐसा तो
नही पहले अँधेरा भेजते हो,
फिर सितारों की दलाली कर उजाला बेचते हो।
कैदखाने में
पड़ा सूरज रिहाई माँगता हो,
या सकल आकाश आँगन में तुम्हारे नाचता हो।
कहीं ऐसा तो नही तुम स्वर्ग पाना चाहते हो,
बात अच्छी है,मगर
उस स्वर्ग की सीढ़ी हमारी अस्थियों से क्यों बनी है!
क्या पता हम
रात भर उत्सव मनाने में जगें फिर,
ठीक अगली भोर अपनी नींद पाने में जगें फिर।
छाँव का व्यापार
होने लग गया तो क्या करेंगे,
और कब तक हम उनींदे नयन में आँसू भरेंगे।
तुम मुनादी पीटकर हमको जगाना चाहते हो,
बात अच्छी है,मगर
अब उस नगाड़े पर हमारी खाल मढ़कर क्यों तनी है!
तुम हमारे द्वार पर दीवा जलाना चाहते हो,
बात अच्छी है,मगर
उस दीप की बाती हमारे रक्त से ही क्यों सनी है!
- अंकित काव्यांश
This post is visited : 634