क्या तुम्हें याद है

क्या तुम्हें याद है

क्या तुम्हें याद है
गली के नुक्कड़ पर बैठने वाला
वो बूढ़ा बाबा
जिसके लिये
आधा आधा पराठा
बचाकर लाते थे हम अपने टिफिन बाक्सों में
और
वो अपने काँपते लरजते झुर्रियों वाले हाथ
हमारे सिरों पर रखकर कहा करता था
या मौला
इन बच्चों की जोड़ी सलामत रखना।

क्या तुम्हें याद है
अपने घर के पास वाला वो पार्क
जिसकी झाड़ियों में हम
पुरानी ईंटों के नीचे छुपाया करते थे
कुछ कंचे
कुछ पतंगें
कुछ कागज की नावें
कुछ रबड़ की गेंदें
और
जब कभी हमारा वो खजाना चोरी हो जाता था
तब कैसे हम दोनों जार जार रोया करते थे।

क्या तुम्हें याद है
अपने कालेज का वो झुरमुट
जहाँ हम सबसे छुपकर बैठा करते थे
खो जाते थे एक दूसरे की बाँहों में
और
शरारती दोस्तों की टोली आकर कहा करती थी
उठो लैला मजनू की औलादों छुट्टी हो गई है।

क्या तुम्हें याद है
गंगा किनारे का वो शिव मंदिर
जहाँ शिव पार्वती के समक्ष कसम खाई थी हमने
मरते दम तक साथ निभाने की
आखिरी सांस तक साथ देने की।
क्या तुम सचमुच भूल गये
वो बूढ़ा बाबा - वो झाड़ियाँ 
- वो झुरमुट.- वो शिव मंदिर

या
वह सब तुम्हें अब बचपना 
और बकवास लगने लगा है

लेकिन
मैं क्या करूँ
मैं तो आज भी जी रही हूँ
उसी बूढ़े बाबा, पार्क, 
झुरमुट और शिव मंदिर में
शायद
तुम कभी नहीं समझ पाओगे।
या
तुम समझना नहीं चाहते।

-बीना शुक्ला अवस्थी

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