आचमन जब-जब किया
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Indira Gaud
- No Comments
बह रही मुझमें निरन्तर सोच की कोई नदी घाट सोये, फूल सोये, पर नहीं सोयी नदी एक तट है दूर कितना, दूसरे तटबन्ध से साथ चलते हैं बन्धे से, ये किसी अनुबन्ध से वन्या बता, किसने तटों के बीच में बोयी नदी आचमन जब-जब किया, कुछ रत्न आये हाथ में दे गयी हर लहर मुझको गीत कुछ सौगात में जब कभी मैली हुई तो आँख ने धोयी नदी अनवरत जल के परस से रेत हो जाती शिला साधना से टूट जाती, दर्प की हर शृंखला जब समन्दर हो न पायी तो बहुत रोयी नदी -इन्दिरा गौड़
This post is visited : 374