सिंगार
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Maya Govind
- No Comments
मैंने जब आंखिन में, डारा आज कजरा तो कारी-कारी घटा, घबराय के चली गई। जैसे घुंघरारी, मैंने अलकें संवारी, एक नागिन ने देखा बलखाय के चली गई। जैसे अंगड़ाई ली, पड़ोस की कुंवारी छोरी, दांतन मां आंगुरी दबाय के चली गई। रूप की चमक चिन्गारी बन अस फूटि, सौतन अंगीठी सुलगाय के चली गई ~माया गोविन्द
This post is visited : 487