गीत लिखना था
- Chirag Jain
- Oct, 11, 2021
- Gunveer Rana
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अवधपुरी इसलिये गया, कल मुझको एक गीत लिखना था चाह नहीं थी रघुनंदन की, मुझे उर्मिला से मिलना था एक रात मैनें सपने में रोती हुई उर्मिला देखी सबने राम सिया को गाया, कर दी उसकी पीर अदेखी मैं तो क़लमकार था, मुझको पक्ष उर्मिला का रखना था मुझको एक गीत लिखना था त्रेता युग में जिस रघुकुल की, बोल रही थी जग में तूती जिसका त्याग रहा सीता से बड़ा, वही रह गई अछूती सीता के समकक्ष समय को, उसका भी चेहरा पढ़ना था मुझको एक गीत लिखना था तुलसी बाबा ने भी केवल सिया-राम के भाव उचारे मगर उर्मिला से कब पूछा कैसे चौदह साल गुज़ारे जो भी दर्द सिया का देखा वही उर्मिला का दिखना था मुझको एक गीत लिखना था बाबा! तुमने क़लम चलाने में थोड़ी कोताही बरती पीर उर्मिला की लिख देते, सुनकर ही फट जाती धरती बाबा तुम आधा कह पाए! तुमको पूरा सच कहना था मुझको एक गीत लिखना था एक परीक्षा दी सीता ने, जिस पर इतना मचा बवंडर रोज़ परीक्षा दी उर्मिल ने ऐसी राजभवन के अन्दर जिसकी तक़लीफ़ों के आगे, सीता का दु:ख कब टिकना था मुझको एक गीत लिखना था -गुनवीर राणा
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