सर्दी के दो रंग

सर्दी के दो रंग

सम्पादकीय

जाड़े की धूप का सेवन दुनिया के किसी भी नशे से ज़्यादा नशीला होता है। पटनीटॉप की ख़ूबसूरत वादियों में खिली हुई धूप में मूली पर नींबू-नमक का चटकारा स्वर्ग के सुख की अनुभूति कराता है। रात भर की नींद के बावजूद सुबह रजाई से लिपट कर सोए रहने के बहाने तलाशना किसे नहीं भाता। चाय के कप से जब ठण्डी हथेलियों की सिकाई की जाती है तो चाय का स्वाद दोगुना हो जाता है। मीठी-मीठी धूप सेकते समय जब हवा का कोई झोंका हल्की-सी चपत लगाकर जाता है तो ऐसा लगता है मानो कोई माँ अपने बच्चे को आलस छोड़कर जाग जाने के लिए कह रही हो। सर्दी के मौसम में जब साँस के साथ मुँह से धुआँ निकलता है तो रोम-रोम ताज़गी से भर जाता है।
पाँच सितारा होटल के कमरे में ओवरकोट लपेटकर, ब्लोअर चलाकर जब काँच के उस पार बर्फ़ पड़ती दिखाई देती है तो ऐसा जान पड़ता है कि सितारों का क़ाफ़िला आसमान से धरती पर उतर रहा है। सर्दी का यह गुलाबी रंग हर किसी को बहुत पसन्द आता है। लेकिन इस सीन में से यदि कमरा, ओवरकोट और ब्लोअर निकाल दिया जाए और बर्फ तथा आपके बीच से काँच की दीवार हटा दी जाए तो फिर इसी सर्दी से आपके गुलाबी होंठ नीले पड़ने लगते हैं। फिर आपको सर्दी गुलाबी नहीं, नीली लगने लगती है।
ऐसी स्थिति में मुँह से धुआँ नहीं निकलता, बल्कि पसलियों के टकराने की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसे में बर्फ़ के सितारे तीर सरीखे चुभते हैं। पूस की रात में खुले आसमान के नीचे रात गुज़ारने को मजबूर बेघरी के लिए हवा सुखद नहीं, जानलेवा होती है। ऐसे में सर्दी से मौसम का गुलाबी रंग तो दूर की बात है, गुलाबी होंठों का रंग भी नीला पड़ जाता है।
कविता का दायित्व है कि वह किसी मौसम के इन दोनों रंगों को साक्षी भाव से देखे। कविता का कर्त्तव्य है कि वह ताज़गी की सरगम भी लिखे और पसलियों की कड़कड़ भी लिखे। कविग्राम का यह अंक सर्दी के इन दोनों रंगों से सुसज्जित है।

-चिराग़ जैन

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