कालिदास! सच-सच बतलाना!
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Nagarjun
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कालिदास! सच-सच बतलाना इन्दुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोये थे? कालिदास! सच-सच बतलाना! शिवजी की तीसरी आँख से निकली हुई महाज्वाला में घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम कामदेव जब भस्म हो गया रति का क्रंदन सुन आँसू से तुमने ही तो दृग धोये थे कालिदास! सच-सच बतलाना रति रोयी या तुम रोये थे? वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका प्रथम दिवस आषाढ़ मास का देख गगन में श्याम घन-घटा विधुर यक्ष का मन जब उचटा खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर चित्रकूट से सुभग शिखर पर उस बेचारे ने भेजा था जिनके ही द्वारा संदेशा उन पुष्करावर्त मेघों का साथी बनकर उड़ने वाले कालिदास! सच-सच बतलाना पर पीड़ा से पूर-पूर हो थक-थककर औ' चूर-चूर हो अमल-धवल गिरि के शिखरों पर प्रियवर! तुम कब तक सोये थे? रोया यक्ष कि तुम रोये थे! कालिदास! सच-सच बतलाना! -नागार्जुन
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