पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे !
क्या हंसता है?
देख सामने तेरा आगत
मुंह लटकाए खड़ा हुआ है,
अब हंसता है फिर रोएगा,
शहनाई के स्वर में जब बच्चे चीखेंगे
चिंताओं का मुकुट शीश पर धरा रहेगा
खर्चों की घोडियां कहेंगी
आ अब चढ़ ले,
कारनेट का का कंठ ढोल-सा हो जाएगा।
तब तुझको यह पता लगेगा
उस मंगनी का क्या मतलब था,
उस शादी का क्या मतलब था।
ओ रे बकरे !
भाग सके तो भाग, सामने बलिवेदी है
दुष्ट बाराती नाच कूद कर
तुझे सजाकर, धूम-धाम से
दुल्हन रुपी चामुंडा की
भेंट चढाने ले जाते हैं।
गर्दन पर शमशीर रहेगी.
सारा बदन सिहर जाएगा.
भाग सके तो भाग रे बकरे,
भाग सके तो भाग.
मंडप के नीचे बैठे ओ मिट्टी के माधो !
हवन नहीं यह भवसागर का बड़वानल है।
मंत्र नहीं लहरों का गर्जन
पंडित नहीं ज्वार-भाटा है
भांवर नहीं भंवर है पगले।
दुल्हन नहीं व्हेल मछली है
तू गठबंधन जिसे समझता
भाग अरे यम का फंदा है
अरे निरक्षर !
बी. ए., बी.टी. होकर भी तू
पाणिग्रहण का अर्थ समझने में
असफल है
ग्रहण-ग्रहण सब एक, अभागे !
सूर्य ग्रहण हो
चन्द्र ग्रहण हो
पाणिग्रहण हो

-ओमप्रकाश आदित्य

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