मम वन्दनीय राम!
- Chirag Jain
- Oct, 21, 2021
- Dhruvendra Bhadauriya
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मम वन्दनीय राम! मम पूज्यनीय राम! इक्ष्वाकुवंशोत्पन्न कौशल्यानंदवर्धनम त्रैलोक्य तेज मंडित, यशस्वी अखंडित उपसनासन्न रविकुलनाथ दशरथनंदनम चिर स्मरणीय राम, मम वन्दनीय राम! पितृ आज्ञावशी! आत्मदाह उद्यत प्राणोत्सर्ग इच्छुक, जिन्होंने कहा था- कि सुधाकर त्याग दे शीतलता हो जावे हिम हीन हिमालय सिन्धु बने बिन्दुवत उगलने लगे आग मन्द-मन्द मलय हिल उठे ब्रह्माण्ड हो जाये प्रलय किन्तु राम न करेगा पिताश्री के वचनों का भरत जैसे अपनों का, सत्य सेतु भेदन प्राण पक्षी उड़ जाए, जल जाए जीवन कानन और सिंहासन दोनों ही सम थे। धन्य थी वह राम के हृदय कि तराजू तभी तो- ‘पिता दीन्ह मोहि कानन राजू’ कह उठे राम वह जननिभक्त, पितृभक्त राम! मम वन्दनीय राम ,मम पूज्यनीय राम! जो देवों द्वारा दुस्त्यज, छोड़ बैठे अयोध्या का सिंहासन! स्वीकारा वनगमन। राज्याभिषेक सुनकर हुए न जो हर्षित वनवास समझ कर दुःखी न हुए किंचित जिन्होंने बार-बार पुकार-पुकार आवाज़ लगाई ‘रघुकुल रीति सदा चली आयी प्राण जाये पर वचन न जायी’ अयोध्या की राज्यलक्ष्मी संपूर्ण पृथ्वी का साम्राज्य जीर्ण-शीर्ण उत्तरीय-सा हो गया जिन्हें त्याज्य। कागर कीर ज्यों भूषण चीर छोड़ दिए आभूषण धार लिए वल्कल और, ‘राजीव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाईं’ तो पूज्यनीय हो गई प्रभु की परछाई वे स्थितिप्रज्ञ, वेदविज्ञ, सत्य प्रतिज्ञ! आराध्य मम राम! मम पूज्यनीय राम! जिन्होंने हिन्द महासिन्धु को बिन्दु तुल्य बान्ध दिया वनवासी गिरिवासी बन्धुओं को कण्ठ लगा जिनकी वाणी वीर हनुमान से यह कह पाई- ‘तुम मोहि प्रिय भरत सम भाई’ वे धर्मवान! वे ज्ञानवान! वे शांतिवान! वे कांतिवान! शबरी के मेहमान अपने सुकर्मों से बन गए भगवान वह मंत्रद्रष्टा समता के मूर्तिरूप ममता के मम प्रशंसनीय राम! मम वन्दनीय राम! जिन्होंने लंकाधिपति रावण को बूढ़े कबूतर-सा बाणाग्र से मार दिया जीत डाली सोने की समृद्धशाली लंका तक पर न उसे स्वीकार किया लौटा दी विभीषण को किसी खोटे सिक्के के समान राम तुम महान! तुम्हारा हर चरित महान! सत्य के सेवन से कहलाए भगवान। जग अनुकरणीय राम! मम वन्दनीय राम! शासन के सुमेरु, कर्म के कुबेर! संभालो फिर सिंहासन! हो उत्पन्न अनुशासन। धनुष को टंकार दो! हनुमान को हुंकार दो दहल जाए दिल रावण का गीत बने जनगण का ‘रामराज्य बैठे त्रिलोका हर्षित भये गए सब शोका’। आओ युग-युग अवतरणीय राम! मम पूज्यनीय राम! मम वन्दनीय राम! - ध्रुवेन्द्र भदौरिया
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