कान्हा से द्वारकाधीश तक
- Chirag Jain
- Oct, 07, 2021
- Surender Sharma
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स्वर्ग में विचरण करते हुए अचानक एक-दूसरे के सामने आ गए विचलित से कृष्ण और प्रसन्नचित सी राधा कृष्ण सकपकाए राधा मुस्काई इससे पहले कृष्ण कुछ कहते बोल उठी राधा- "कैसे हो द्वारकाधीश?" जो राधा उन्हें कान्हा-कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आपको संभाल लिया और बोले राधा से- "मैं तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते हैं कुछ मैं अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो! सच कहूँ राधा जब-जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बून्दें निकल आती थीं।" बोली राधा - "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ न तुम्हारी याद आई न कोई आँसू बहा क्योंकि हम तुम्हें भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते इन आँखों में सदा तुम रहते थे कहीं आँसुओं के साथ निकल न जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे। प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया इसका इक आइना दिखाऊँ? कुछ कड़वे सच सुन पाओ तो सुनाऊँ? कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए यमुना के मीठे पानी से ज़िन्दगी शुरू की और समुद्र के खारे पानी तक बढ़ गए! एक उंगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दसों उंगलियों पर चलने वाली बाँसुरी को भूल गए! कान्हा, जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो जो उंगली गौवर्द्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी प्रेम से अलग होने पर वही उंगली क्या-क्या रंग दिखाने लगी; सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी। कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फ़र्क़ होता है, बताऊँ? कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता। युद्ध में और प्रेम में यही तो फ़र्क़ होता है युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं। कान्हा, प्रेम में डूबा हुआ आदमी दुःखी तो रह सकता है पर किसी को दुःख नहीं देता। आप तो कई कलाओं के स्वामी हो दूरद्रष्टा हो गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो पर महाभारत के युद्ध में आपने ये क्या निर्णय लिया अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया! सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो प्रजा का पालाक होता है उसका रक्षक होता है। आप जैसा महा ज्ञानी उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजा को ही मार रहा था। आपनी प्रजा को मरते देख आपमें करुणा नहीं जगी? क्योंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे। आज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधीश वाली छवि को ढूंढते रह जाओगे हर घर में, हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नज़र आओगे। आज भी मैं मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं उनके महत्त्व की बात करते हैं। मगर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं; प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं। और जिस गीता में मेरा दूर-दूर तक नाम भी नहीं है आज भी लोग उसके समापन पर "राधे राधे" करते हैं।" -सुरेन्द्र शर्मा
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