सवेरा हुआ है क्या
- Chirag Jain
- Oct, 21, 2021
- Pankaj Palash
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गलियों में फिर से चान्द का फेरा हुआ है क्या पलकों की ख़्वाहिशों का सवेरा हुआ है क्या मंडरा रहीं हैं सिर पे मेरे क्यूं ये तितलियाँ मुझको तेरे ख़याल ने घेरा हुआ है क्या हर शय समेटने में नशा आ रहा मुझे सब कुछ तेरी नज़र का बिखेरा हुआ है क्या पलकों पे कौन कर गया फूलों की खेतियाँ कल शब कहीं तू ख़्वाब में मेरा हुआ है क्या आँसू नहीं हैं फिर भी क्यूं दिखते हैं आँख में ये चित्र मुहब्बत का उकेरा हुआ है क्या सूरज गया है काम से आएगा लौटकर जुगनू की बद्दुआ से अंधेरा हुआ है क्या झुठला दूं अपनेपन में हक़ीक़त ये और बात मेरी तरह से कोई भी मेरा हुआ है क्या बस्ती-ए-दिल को लूट के मुज़रिम नहीं है तू तुझसा भी कोई और लुटेरा हुआ है क्या सूरज को कठघरे में खड़ा कर रहे हो तुम मुर्ग़े के बोलने से सवेरा हुआ है क्या -पंकज पलाश
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