तुम जानो या दर्पण जाने
- Chirag Jain
- Nov, 02, 2021
- Satyendra Govind
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तुम्हें तुम्हारा तुमसे मिलना तुम जानो या दर्पण जाने हमें तुम्हारे हर इंगित पर गीत नया लिखते जाना है दूर क्षितिज पर तुम सपनों की, उत्तम झालर टाँका करना जिन आँखों से हम वंचित हैं, उनसे ख़ुद को झाँका करना कभी उठे जो तुम पर ऊँगली दोषारोपण हम पर करना हमीं तुम्हारा पक्ष रखेंगे तुमको कहीं न हकलाना है सदा ऊँचाई छूते रहना कभी जमीं पर पाँव न धरना जब तक सब कुछ ठीक रहे तुम बेशक हमको याद न करना लेकिन विषम दशा जब आए हमसे सब कुछ हक़ से कहना रोना होगा हम रो लेंगे तुमको केवल मुस्काना है हमें पता है तुम बस अपने प्रतिमानों पर गर्व करोगी और हमारे गीतों के छंदों पर किंचित ध्यान न दोगी फिर भी कहो अगर तो कर दें अपना सब कुछ तुम्हें समर्पित तुम बिन जग में तुम्हीं बताओ क्या खोना है? क्या पाना है? -सत्येन्द्र गोविन्द
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