क्या पता ये मिलन कल दुबारा न हो
- Chirag Jain
- Oct, 11, 2021
- Aatma Prakash Shukla
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आज की रात बाँहों मे़ सो जाइये क्या पता ये मिलन कल दुबारा न हो या दुबारा भी हो तो भरोसा नहीं मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो गोद मे़ शीश धर चूम जलते अधर, इन घने कुन्तलों में छिपा लीजिये आचरण के सभी आवरण तोड़कर, प्राण पर्दा दुइ का हटा दीजिये हाथ धो के पड़ा मेरे पीछे शहर, ले के कोलाहलों का कसैला ज़हर इसलिये भागकर आ गया हूँ इधर, मेरे महबूब मुझको बचा लीजिये आज की रात आँखों में खो जाइये क्या पता कल नज़र हो नज़ारा न हो या नज़ारा भी हो तो भरोसा नहीं मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो इस अजाने उबाऊ सफ़र में कहीं, दो घड़ी साथ जी लें, बड़ी बात है भीड़ से बच अकेले में बैठें ज़रा, चान्दनी साथ पी लें, बड़ी बात है साँस की सीढ़ियों से फिसलती हुई, उम्र ठहरे कहाँ कुछ भरोसा नहीं इन समर्पित क्षणों में प्रिये रात भर, हम फटे घाव सी लें, बड़ी बात है आज की रात मेरे ही हो जाइये क्या पता कल समय हो, इशारा न हो या इशारा भी हो तो भरोसा नहीं मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो -आत्मप्रकाश शुक्ल
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केश