अपना हिंदुस्तान जले

अपना हिंदुस्तान जले

धधक-धधक कर जले पंचनद
सुलग-सुलग आसाम जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

क़दम-दर-क़दम खाई-खन्दक
लावा-लावा, कुआँ-कुआँ
देश-वेश-परिवेश दूर तक
स्याही-स्याही धुआँ-धुआँ
नागालैंड, बिहार, बांग्ला
फिज़ी, मिज़ो आसाम जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

मरघट-मरघट चहल-पहल है
पनघट-पनघट सन्नाटा
आंगन-आंगन आग उलीची
करवट-करवट विष बाँटा
कामख्या का दीप जले
चाहे गोविन्दा का धाम जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

बोल रे मोमिन, बता बिरहमिन
नफ़रत किस मज़हब का चलन
किस आयात में क़त्ल लिखा है
कौन-सा हत्या का कीर्तन
ग्रन्थ जले या जले बाइबिल
गीता जले, क़ुरआन जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

चाकू-चाकू चैराहे हैं
छुरी, कटारी हैं गलियाँ
वर्दी-वर्दी पिस्तौलें हैं
देहरी-देहरी हथकड़ियाँ
दफ़्तर-दफ़्तर दुखड़ा रोये
ख़ाली हाथ जवान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

गाँव-गाँव में सामन्ती है
कस्बों में साहूकारी
नगर-नगर पूंजी के अजगर
महानगर विषधर भारी
चिमनी-चिमनी जले मजूरा
ख़ाली पेट किसान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

घुटने-घुटने लोकतन्त्र है
कुर्सी-कुर्सी चंगेज़ी
खादी-खादी अवसरवादी
बढ़ा रहे हैं ख़ूंरेज़ी
गांधी, तिलक, सुभाष, गोखले
शेखर का सम्मान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

बहरे-बहरे न्यायालय है
बड़बोले क़ानून यहाँ
सोने-चान्दी और बिक जाते
बड़े-बड़े अफलातून यहाँ
मूल्य जले या जले आस्था
विधि जल जाये, विधान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

कोठे-कोठे नूपुर बिकते
नंगे जिस्मों की मंडी
देवालय से वेश्यालय तक
है विकास की पगडंडी
सीता जले, जले अनुसूइया
द्रोपा का ओरियान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

अमरीकी दादागिरी है
इराक़ी तानाशाही
फैल रही है विषयुद्धों की
दुनिया में ख़ूनी स्याही
धधक-धधक कर जले एशिया
योरोप जले, जहान जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

चाबुक-चाबुक पीठ हो गई
थप्पड़-थप्पड़ गाल हुए
एक अरब हम नपुंसकों के
देखो कैसे हाल हुए
इनको क्या लेना-देना है
सुबह जले या शाम जले
आग कहीं भी लगे, लपट से
अपना हिंदुस्तान जले

-आत्मप्रकाश शुक्ल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *