क्या कहा अन्धेरा जीत गया
- Chirag Jain
- Nov, 17, 2021
- Balkavi Bairagi
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क्या कहा अन्धेरा जीत गया क्या कहा उजाला हार गया क्या कहा किरण के सारे ही कुनबे को लकवा मार गया नहीं, नहीं ये झूठी बातें हैं ये साज़िश है, मक्कारी है पीढ़ी को आवारा कहना गुस्ताख़ी है , ग़द्दारी है इन हाथों में पत्थर, और ओंठों पर नारे सड़को पे आ गए क्यों जलते अंगारे हा राम! कोई विचार तो करे कोई इन अंगारों से प्यार तो करे इस नागफ़नी को.... ये नागराज को कहाँ हक़ है बेचे चन्दन को किसने हक़ दिया मावस को पूनम की बदनामी का किसने हक़ दिया पतझर को कोपल की नीलामी का पतझर की पूजा, कोपल को गाली बाँझ नहीं है ये फुलवन की डाली सम्मान का कोई व्यवहार तो करे बलिदानों का अर्थ पूछिए, वे बलिदानी से तरुनाई का पुण्य जिन्होंने धोया पानी से किसने छोड़ा इन तीरों को कुटिल कमानों से पूछ रही है .....परम् सयानों से पीठों पे परबत, पेटों में जंगल आंखों में बारूद और पांवों में दलदल इस हिम्मत से कोई स्वीकार तो करे जब आँगन में.....का केवल पोषण हो जब भविष्य के वर्तमान का केवल शोषण हो तब फिर कैसा भी अतीत हो सब बेमानी है .....राम कहानी है किनारे-किनारे वो भी कुँआरे दो-चार सपनें वो भी बिचारे इन सपनों से आँखें कोई चार तो करे घोर निराशा कोई तो समझे इन लावे की नदियों का कोई उद्गम तो ढूंढे इस महाध्वंस मन्दरसप्त का पंचम तो ढूंढे डमरू की डिम-डिम, तांडव की डोरें कोई इन जुलूसों के जत्थों को मोड़ें कि ज्वाला पे कोई ...तो करे सिवा हमारे अँधियारों को कौन जलाएगा सिवा हमारे संस्कृतियों को कौन बचाएगा सिवा हमारे इस बगिया को कौन बचाएगा कोई तो समझे, कोई तो जाने क्यों कर खुले हैं ये जलसे ... इस ज्वाला का कोई सिंगार तो करे क्या करते हो रोज़ समीक्षा की...अनुशासन की सिंहासन की नहीं आग बुझाए हाँ ख़ूब पता है हमको भी ये देश हमारा है हाँ मग़र तुमसे भी ज़्यादा हमको प्यारा तुमने बनाया और हमने मिटाया ओर जिसने हमने ये पलीता थमाया कोई उस पर ज़रा सा प्रहार तो करे इस लालकिला की दीवारों से.... संसद के गलियारों से .... क्या ..... नहीं होगा या तो हाँ कहदो, कह दो कभी नहीं होगा तो आगे इसी के कुछ तय करें हैं मरना ही हो तो जी के मरे हम कुछ सामां सफ़र का तैयार तो करें -बालकवि बैरागी
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