हम अभी संघर्ष-रत हैं!

हम अभी संघर्ष-रत हैं!

वैजयन्ती तुम मनाओ
हम अभी संघर्ष-रत हैं!

मुक्ति की भागीरथी का हो चुका है पुण्य उद्गम,
शेष है शिव की जटाओं से उतरने का उपक्रम;
शास्त्र-सम्मत श्रम कथाओ! 
हम अभी आदर्श-रत हैं!
वैजयन्ती तुम मनाओ
हम अभी संघर्ष-रत हैं!

लौह-निर्मित लेखनी आलेख लिखती जा रही है,
स्वर्ण-मण्डित दुर्ग की दीवार झुकती जा रही है;
जीर्ण सामन्ती प्रथाओ! 
हम अभी उत्कर्ष-रत हैं!
वैजयन्ती तुम मनाओ
हम अभी संघर्ष-रत हैं!

दैन्य-दानव को दुबारा लौटकर आना नहीं है;
सृष्टि को संहार के सीमान्त तक जाना नहीं है;
सृजन की संभावनाओ! 
हम विचार-विमर्श-रत हैं!
वैजयन्ती तुम मनाओ
हम अभी संघर्ष-रत हैं!

-बलवीर सिंह रंग

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