ओ विप्लव के थके साथियो!

ओ विप्लव के थके साथियो!

ओ विप्लव के थके साथियो!
विजय मिली, विश्राम न समझो

उदय प्रभात हुआ फिर भी तो,
छाई चारों ओर उदासी;
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं,
किन्तु धरा प्यासी-की-प्यासी;
आहत-अन्तर के पल भर की राहत को, आराम न समझो!

पद-लोलुपता और त्याग का,
एकाकार नहीं होने का;
दो नावों पर पग रखने से,
सागर पार नहीं हाने का;
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे, तब तक पूरा काम न समझो!

तुमने वज्र-प्रहार किया था,
पराधीनता की छाती पर;
देखो, आँच न आने पाए,
जन-जन की सौंपी थाती पर;
युगारम्भ के प्रथम-चरण की गतिविधि को, परिणाम न समझो!

-बलवीर सिंह रंग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *