नवजीवन

नवजीवन

सबकी नज़र पीर से सूखी, मेरी नज़र ख़ुशी से नम है
जिसको सबने घाव कहा है, वह नवजीवन का उद्गम है

क्या सोचा था, शाख कटेगी तो मैं माली को कोसूंगा
जो छिल-छिलकर क़लम बन गयी, मैं उस डाली को कोसूंगा
जिसके दम पर पूरा गुलशन स्वस्थ रहा है, पुष्ट रहा है
क्या सोचा था, इस गुलशन की उस रखवाली को कोसूंगा
कीचड़, मिट्टी, काँट-छँटाई -यह सब उपवन का अनुक्रम है
जिसको सबने घाव कहा है, वह नवजीवन का उद्गम है

खुरपी का संयोग मिले तो पौधा कुछ कुम्हला जाता है
लेकिन खुरपी के ही हाथों मधुबन में यौवन आता है
जिसकी जड़ ने ज़ख़्म सहे हैं, उसकी फुनगी आली होगी
जो परती से प्रेम करेगा, उस पर क्या ख़ुशहाली होगी
जिस पौधे ने जितना झेला, वह उतना ही सुंदरतम है
जिसको सबने घाव कहा है, वह नवजीवन का उद्गम है

'इससे पहले', 'इसके पीछे' - बस इस पल का खेल यही था
पीछे का सब सार यही था, आगे का सब मेल यही था
क्या मैं भी इस पल से डरकर माली पर कुछ प्रश्न उठाता
क्या मैं भी कण जैसा होकर, विधिना को कुछ ढंग सिखाता
आधा उगना, दुगुना उगना, यह सब कितना मनभावन है
जिसको सबने घाव कहा है, वह नवजीवन का उद्गम है

© चिराग़ जैन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *