दीपक करे विचार

दीपक करे विचार

आओ मिलकर दीप हम, धरें देहरी द्वार ।
एक दीप हिय में रखें, घर भीतर उजियार ।
घर भीतर उजियार, तभी सच्ची दीवाली ।
धन वैभव ऐश्वर्य ,शांति सुख देने वाली ।
कह 'कोमल' कविराय, दीप हर जगह जलाओ ।
निज मन में भी दीप, जलाएं मिलकर आओ ।

फैला है चहुँ ओर बस, तम का ही विस्तार ।
किन्तु लड़़ूँगा अंत तक, दीपक करे विचार ।
दीपक करे विचार, तिमिर से टकराऊँगा ।
देख सघन तम राज्य, नहीं मैं घबराऊँगा ।
कह 'कोमल' कविराय, तिमिर घनघोर विषैला ।
कैसे उसको दूर, करूँ जो मन में फैला ।

-श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

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