जिससे भिड़ता हूँ, वो सरकार में आ जाता है
- Chirag Jain
- Nov, 09, 2021
- Prabudha Saurabh
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ग़म छुपाता हूँ तो अश’आर में आ जाता है ग़म बताता हूँ तो अख़बार में आ जाता है हमने दुनिया से छुपा रक्खी हैं अच्छी ग़ज़लें माल दिख जाए तो बाज़ार में आ जाता है इसलिए छोड़ दिये मैंने अना के झगड़े जिससे भिड़ता हूँ, वो सरकार में आ जाता है देखना उनकी ख़ुशी काट के मोहरे मेरे बस मज़ा जीत का इस हार में आ जाता है लाल आँखों से तेरी भाभी की डरने का नहीं इतना ग़ुस्सा तो उन्हें प्यार में आ जाता है इश्क़ की राह अजब है जहाँ चलते चलते यक-ब-यक आदमी मंझधार में आ जाता है सब धरी की धरी रह जाती हैं ग़ज़लें वज़लें तू मेरे सामने बेकार में आ जाता है -प्रबुद्ध सौरभ
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