जिससे भिड़ता हूँ, वो सरकार में आ जाता है

जिससे भिड़ता हूँ, वो सरकार में आ जाता है

ग़म छुपाता हूँ तो अश’आर में आ जाता है
ग़म बताता हूँ तो अख़बार में आ जाता है

हमने दुनिया से छुपा रक्खी हैं अच्छी ग़ज़लें
माल दिख जाए तो बाज़ार में आ जाता है

इसलिए छोड़ दिये मैंने अना के झगड़े
जिससे भिड़ता हूँ, वो सरकार में आ जाता है

देखना उनकी ख़ुशी काट के मोहरे मेरे
बस मज़ा जीत का इस हार में आ जाता है

लाल आँखों से तेरी भाभी की डरने का नहीं
इतना ग़ुस्सा तो उन्हें प्यार में आ जाता है

इश्क़ की राह अजब है जहाँ चलते चलते
यक-ब-यक आदमी मंझधार में आ जाता है

सब धरी की धरी रह जाती हैं ग़ज़लें वज़लें
तू मेरे सामने बेकार में आ जाता है

-प्रबुद्ध सौरभ

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