ये ज़हर घुली हवाएँ
- Chirag Jain
- Nov, 02, 2021
- Indira Indu
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तेरे नाम पर लहू की अगर नदियाँ अगर बहेंगी मेरी आस्थाएँ कैसे तुझे देवता कहेंगी ये कहो ख़ुदा के बन्दो, तुम्हीं जब नहीं रहोगे तो कहाँ बनेंगे मन्दिर, कहाँ मस्जिदें रहेंगी जो मिली हैं मज़हबों के मुझे यातनागृहों से वो सज़ाएँ और कब तक मेरी पीढ़ियाँ सहेंगी नए दौर के ख़ुदाओ! ये बताओ और कब तक ये ज़हर घुली हवाएँ मेरे देश में बहेंगी यही फ़ैसला है मेरा, यही फ़ैसला रहेगा या तो मैं रहूंगी घर में या ये बिजलियाँ रहेंगी ये अजान और ये पूजा, सभी बेटियाँ हैं ‘इन्दु’ मेरे घर में चहचहाती, ये रही हैं और रहेंगी -इन्दिरा इंदु
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