कारवाँ गुज़र गया
- Shinto
- Nov, 24, 2021
- Gopaldas Neeraj
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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा
इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर चली, यों हवा यहाँ चली
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली
और हम झुकी नज़र, देह की दुकान पर
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
-गोपालदास नीरज