गाँव की याद सतावे रे

गाँव की याद सतावे रे

ओ बालम साथे क्यों लई आयो रे
म्हारो प्यारो गाँव छुड़ायो रे
सासू रो मण घणो दुखायो रे
नाणो देवरिया बिछड़ायो रे
ऊ सपणा में आवे रे, गाँव की याद सतावे रे

रोज सवेरे हूं दातुण करते रे लई की डाली
सीरावण में छाछ राबड़ी खाती हूं भर-भर थाली
यां पोया खई-खई ने कंदरई गी रे
गोरी काया यां कुमलई गी रे
सूकी साटी-सी संकड़ई गी रे
म्हारी कम्मर भी अंकड़ई गी रे
समूसो अब नी भावे रे, गाँव की याद सतावे रे

चटक हूं होढ़ चुनड़ी ने फेर खेत पे जाती
खूब काबरा होर् उड़ाती गीत फाग का गाती
तू घाघरो घेरदार नी लावे रे
काठो पेटीकोट सिलावे रे
सेंडल ऊँची ई पैरावे रे
म्हारे चलता भी नी आवे रे
गड़गी नीत लचकावे रे, गाँव की याद सतावे रे

नदी पै सांपड़वा हूं जाती लई मोगरी हाथ
पानी में छक छई खैलती रेती हूं सांतण साथ
यां मीठी बातां हुई नी पावे रे
म्हार से हास्यों भी नी जावे रे
पक्को कमरो यो नी भावे रे
धीरे बोलां तो घर्रावे रे
पड़ोसी कान लगावे रे, गाँव की याद सतावे रे

भूरी भेंस को दूद काड़ती भर-भर दोणी चार
सवा हाथ रो लई घूंघटो, फेर बणती पणियार
हूं पस्तऊं लागी ने थारे चाले रे
काली चाय कालजो बाले रे
यां ओरता कुत्रा पाले रे
घुंघटो नेठूज नी निकाले रे
मर्द ने आँख बतावे रे, गाँव की याद सतावे रे

गोल पताशा रोज बटावे रे नत का गावे गीत
हालचाल पूछे आपस में कसी वा ग्राम की रीत
तम भी भूनसा रा का भागों रे
रातें सोई जाओ तो जागो रे
छत पेै बोलो यो कालो कागो रे
म्हारे चैथो महीणो लागो रे
चटणी कूण उठावे रे, गाँव की याद सतावे रे

म्हारा गाँव में बहु-बेटी ने देखी लोग हट जावे
सलमां पे कोई आँख उठाई ले तो शंकर दा बट खावे
यां तो हर कोई आख्या सेके रे
छोरा-छोरी हूण के देखे रे
कंकड बाट चलात ई फेंके रे
बूढ़ा गदड़ा सरका रेके रे
ईलू-ईलू गावे रे, गाँव की याद सतावे रे

दस दिन तक वां ईद मनावे रे, पन्द्रह दिन तक होली
महीना भर तक सावन झूले रे, छोरा-छोरी की टोली
यां तो नत का ई कफ़्र्यू लागे रे
कोई सोवे ने कोई जागे रे
सिपला रात-रात भर भागे रे
कोई देख ने गोलियां दागे रे
सीटियां यूज बजावे रे, गाँव की याद सतावे रे

-लाड़ सिंह गुर्जर

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