अनबाँचा पत्र लौट आया
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Maya Govind
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डाकिये ने द्वार खटखटाया अनबाँचा पत्र लौट आया। सांझ थी और हाथ में था सांझ का दीया डाकिये ने द्वार तभी खटखटा दिया मेरा ही लिखा पत्र हाथ में दिया डाकिया तो चल दिया बुझा दिया दीया ये दीया बुझा, तो बुझा आस का दीया अब तो कोई ज़िन्दगी का दिल बुझा दिया इन्तज़ार भी थका, थका मेरा जिया फिर न कहना मैंने इन्तज़ार ना किया जब दीये ने ही दीया बुझाया अनबाँचा पत्र लौट आया। याद फिर से आयी उस घर की दहलीज अस्त-व्यस्त कमरा और बिखरी हर चीज़ ननदी की हलचल और सासू की खीज तुलसी का बिरवा और वो कजरी तीज धुली-धुली चादर पे सेहमल के बीज बिछिया और पायल की छेड़ बदतमीज़ फिर मुझको याद आया प्रेम का मरीज़ चोरे-चोरे नैना बिन बटन की कमीज़ याद ने अतीत को चुराया अनबाँचा पत्र लौट आया। जीवन का काग़ज़ है, क़लम ये सफ़र स्याही के जैसा है रात का प्रहर प्यास है सम्बोधन, आँसू हैं सिताक्षर गगन के लिफ़ाफ़े पर चान्द की मुहर प्रेम ही पता है, अनजान है नगर दुनिया डाकघर, गायब पोस्टमास्टर जीव डाकिये ने, डाक बाँटी उम्र भर फिर भी एक खत न मिला सही पते पर उत्तर की जगह प्रश्न पाया अनबाँचा पत्र लौट आया -माया गोविन्द
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