श्रम के सपने
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Shishupal Singh Nirdhan
- No Comments
श्रम के सपने गढ़े चलो तेज़ चाल से बढ़े चलो तुम्हें पुकारे मैया, हो मेरे भैया! जीवन ज्योति न बुझने पाए, भारत भाल न झुकने पाए दुनिया रूठे अंबर टूटे, बढ़कर क़दम न रुकने पाए हिंदू, सिक्ख, मुसलमां तीनों, मिलकर माँ के आँसू बीनो कोई विदेशी नहीं हितैषी, माँ की लाज बचैया प्राणों से जिसको प्रण प्यारा, रहा उसी के निकट किनारा जीवन जिधर बढ़ेगा पथ पर, उधर मुड़ेगी युग की धारा लगन उषा खोले दरवाज़ा, श्रम का सूरज, तम का राजा सूरज चमके, भू-रज दमके, नाचे अँगना स्वर्ण चिरैया अवनी गाये, अंबर झूमे, स्वर्ग धरा का आँगन चूमे देख तुम्हारा साहस, दुश्मन कभी न माँ के सिर पर घूमे जब-जब रण में लोहा जागे, वक्ष तान बढ़ चलना आगे नहीं डसेगी, मृत्यु हँसेगी, जिनके राम रखैया जगो किसानो! अन्न उगाओ, अपनी पुण्य पताका फहरे ऊपर तिनका नीचे मोती, बीच-बीच में जीवन लहरे धन-धरती पर हो न लड़ाई, बढ़े सभ्यता की सुघराई दुर्दिन में भारत माता के, तुम हो धीर धरैया -शिशुपाल सिंह निर्धन
This post is visited : 373