मैं मुहब्बत का तराना हूँ
- Chirag Jain
- Nov, 09, 2021
- Prabudha Saurabh
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मैं मुहब्बत का तराना हूँ ज़माने वालो तेरे झगड़ों से पुराना हूँ ज़माने वालों मुझको बेशर्म सियासत का यूँ सामां न करो करके तौहीन मुझे ऐसे परेशां न करो मैं अजूबा हूँ जहाँ भर की भली नज़रों में तुम अजूबे हो मगर दोस्त मेरी नज़रों में तेरी औक़ात कहाँ जो मेरी कीमत समझे मेरा उन्वान मुहब्बत है, मुहब्बत समझे मुझ पे झगड़े नहीं होते मियां, होती है ग़ज़ल मैं तेरा ताज नहीं हूँ, मैं तो हूँ ताज महल हूँ मुहब्बत से, मुहब्बत का, मुहब्बत के लिए तेरी जम्हूरियत है सिर्फ़ किताबत के लिए मुझको वोटों की सियासत से अलग ही रक्खो मुझको क़ानून-ओ-अदालत से अलग ही रक्खो मैंने देखें हैं धरम इनके भी और उनके भी मैंने देखे हैं करम इनके भी और उनके भी कैसे कह दूँ मैं बुरा या कि किसी को अच्छा और रहने दो मेरा मुँह न खुले तो अच्छा तुम तो हो आज, कोई कल, कोई परसों होगा गीत-ग़ज़लों में मेरा ज़िक्र तो सदियों होगा इसलिए मेरे अज़ीज़ों सुनो ऐसा न करो छोड़ दो मुझको अकेला मुझे रुस्वा न करो – प्रबुद्ध
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