निंदा रस
- Chirag Jain
- Nov, 08, 2021
- Madan Mohan Samar
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भोर, सांझ, दिन आध में, निंदा रस का पान। कभी इसे मत छोड़ना, घर हो या श्मशान।। रस का राजा जो रहे, निंदा रस महराज। बिन पंखों बिन पैर के, इसकी हर परवाज।। दफ्तर, टेशन, मंच पर , इसका रखो वजूद। टांग फसाने बीच मे, तुम भी जाओ कूद।। बिन निंदा क्या जिंदगी, बिन निंदा क्या ठाठ। बिन निंदा हमसे भले, पत्थर, कांटे , काठ।। उसे बख़्श दो साथ मे, बैठा भागीदार। उठते ही उस पर करो, इस रस की बौछार।। अपच समूची दूर हो, कुंठा का उद्धार। निंदा रस रसना धरे, हुआ कलेजा ठार।। पोजिशन परफेक्ट हो, महफ़िल के हो ताज़। इस रस के दो पैग से, दिन का हो आगाज़।। -मदन मोहन समर
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