कहो तो सही

कहो तो सही

क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही

चाहे मधुबन में पतझार लाना पड़े
या मरुस्थल में शबनम उगाना पड़े
मैं भगीरथ-सा आगे चलूंगा मगर
तुम पतित पावनी-सी बहो तो सही

पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो
मैं भी दशरथ-सा वरदान दूंगा तुम्हें
युद्ध में कैकेयी-सी रहो तो सही

हाथ देना न संन्यास के हाथ में
कुछ समय तो रहो उम्र के साथ में
एक भी लांच्छन सिद्ध होगा नहीं
अग्नि में जानकी-सी दहो तो सही

-अंसार क़म्बरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *