करवा चौथ

करवा चौथ

चान्द का छूटा पसीना डर गया है
आज मेरा चान्द भी छत पर गया है

इक सुहागिन की हुई सौभाग्य से जब मुँहदिखायी
प्यास सातों जन्म की गंगाजली में जा समायी
मन के मंगलसूत्र में शुभ पर्व ये शोभित हुआ जब
मांग का सिंदूर भी अभिमान से गर्वित हुआ तब
सप्तपद से लाल जोड़े की गमक आंगन सुवासित
सुर्ख मेहँदी की हथेली से हुआ है प्राण पोषित
पाँव का बिछुआ नज़र में तर गया है
आज मेरा चान्द भी छत पर गया है

इस जगत् में प्रेम का अधिकार ही सर्वस्व सुख है
वो अभागा है कि जिसके द्वार ये पंछी विमुख है
प्रेम की नाज़ुक लहर कम्पन जगा जाती हृदय में
झील-सी गहराई आँखों की नज़र आती हृदय में
प्रेम में कच्चे अधूरे स्वप्न जब शृंगार करते 
तब कलेजा पत्थरों का तैरता तट पार करते
लो अन्धेरा छटपटाकर मर गया है
आज मेरा चान्द भी छत पर गया है

नेह ने सन्देश भेजा बाँह भर पाया निमन्त्रण
धूप शर्मीली हुई  है छाँह भर पाया निमन्त्रण
रूप की अभिसारिका गलहार बनकर आ गयी है
इक नवेली रूपसी संसार बनकर आ गयी है
बालकर दीपक ये छलनी में उजाला भर रही है
हो अमर सौभाग्य मेरा प्रार्थना ये कर रही है
चान्द करवाचौथ का भीतर गया है
आज मेरा चान्द भी छत पर गया है

- अजातशत्रु

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