धरती की पीड़ा
- Chirag Jain
- Nov, 02, 2021
- Neeraj Sharma
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पल भर के दर्द निवारण को उपचार भला कैसे लिख दूं, धरती की पीड़ा मन में है श्रृंगार भला कैसे लिख दूं। इंसान स्वयं ही काटे जब, अपनी ही मूल शिराओं को। जब स्वयं निमंत्रण दे दुनिया, टलने वाली विपदाओं को। जब जुगनू ये घोषणा करें, मै ही सूरज का स्वामी हूं। जब अंतर्मन भी बोल उठें, मैं रावण का अनुगामी हूं। तब दृष्टिहीन हो सच्चाई की हार भला कैसे लिख दूं, धरती की पीड़ा मन में है श्रृंगार भला कैसे लिख दूं। जब दीवाली के आने से, निर्मल वायु घबराती हो। जब ईद मुबारक आते ही, बकरों की शामत आती हो। जब स्वयं धर्म के रक्षक द्वारा, धर्म दिव्यता खोता हो। जब गणपति पूजन और विसर्जन, मदिरा पीकर होता हो। तो मैं इन सब पाखंडों को त्योहार भला कैसे लिख दूं, धरती की पीड़ा मन में है श्रृंगार भला कैसे लिख दूं। जब सोशल साइट पर मानवता, नए नए आयाम गढ़े किंतु धरातल पर दो पग भी, साथ सत्य के नही बढ़े। जब नागफणी की उपज बढ़ी हो, धर्मादिक स्थानों पर। जब सिर्फ वासना शीश चढ़ी हो, दीवानी दीवानों पर। तो इन कलुषित आचरणों को मैं प्यार भला कैसे लिख दूं, धरती की पीड़ा मन में है श्रृंगार भला कैसे लिख दूं। -नीरज शर्मा
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