प्यार की बात

प्यार की बात

बस लुटाता रहा हूँ लिया कुछ नहीं
आप कहते हैं मैंने किया कुछ नहीं

प्यार की बात होने से क्या फ़ायदा
अब मुलाक़ात होने से क्या फ़ायदा
सूखकर जब धरा आज बंजर हुई
तब ये बरसात होने से क्या फ़ायदा
कैसे मानूँ कि सब कुछ है संसार में
मैंने ढूंढा बहुत, पर मिला कुछ नहीं
बस लुटाता रहा हूँ लिया कुछ नहीं

मेरे हक़ में नहीं, फ़ैसला है तो क्या
एक मुझको सभी ने छला है तो क्या
अब तो चुपचाप ही सिर्फ़ रहता हूँ मैं
आप से भी यही बात कहता हूँ मैं
हाले-दिल भी बताना नहीं ठीक है
कोई पूछे तो कह दो- हुआ कुछ नहीं
बस लुटाता रहा हूँ लिया कुछ नहीं

रूप है इस सिरे, प्रेम है उस सिरे
कोई सपनों की गलियों में कब तक फिरे
मन के आकाश में दुःख के बादल घिरे
सिर्फ़ काग़ज़ पे दो बून्द आँसू गिरे
प्रेम करता है वो तो समझ जायेगा
मैंने ख़त में तो वैसे लिखा कुछ नहीं
बस लुटाता रहा हूँ लिया कुछ नहीं

बद्दुआ का असर लग रहा है मुझे
कितना मुश्किल सफ़र लग रहा है मुझे
सब अन्धेरे में मुझको गये छोड़कर
किससे बोलूँ कि डर लग रहा है मुझे
थक गया इस कदर नींद कब लग गयी
मैं कहाँ सो गया ये पता कुछ नहीं
बस लुटाता रहा हूँ लिया कुछ नहीं

-चन्दन राय

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