कोमल की कुंडलियाँ
- Chirag Jain
- Jan, 15, 2022
- Shyam Sundar Srivastava Komal
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चलते पुर्जे हो गए, हल्के फुल्के लोग। काजू-किशमिश का करें, तीन बार वे भोग। तीन बार वे भोग, कभी दानों को तरसे। और उन्हीं पर आज, झूम कर सोना बरसे। कह 'कोमल' कविराय, रहे हम कर को मलते। बढ़े न आगे पांव, रहे जीवन भर चलते। नाते-रिस्तों में करें, लोग-बाग व्यापार। शून्य हुई संवेदना, दूषित भाव विचार। दूषित भाव विचार, स्वार्थ हल करते अपना। प्रेम समर्पण प्यार, समझ लो कोरा सपना। कह 'कोमल' कविराय, बात हैं तुम्हें बताते। स्वार्थ पूर्ति के केंद्र, हुए सब रिस्ते-नाते। सीढ़ी हमको मानकर, पूरा किया प्रयोग। भूल गए फिर बाद में, ऐसे भी कुछ लोग। ऐसे भी कुछ लोग, स्वार्थ में बिल्कुल अंधे। गंदी उनकी सोच, गलत हैं उनके धंधे। कह 'कोमल' कविराय, यही सीखेगी पीढ़ी। सिर्फ निकालो काम, बना दूजों को सीढ़ी। -श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
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