एक साथ कैसे निभ पाये
- Chirag Jain
- Oct, 11, 2021
- Snehlata Sneh
- One Comments
जितना नूतन प्यार तुम्हारा उतनी मेरी व्यथा पुरानी एक साथ कैसे निभ पाये सूना द्वार और अगवानी! तुमने जितनी संज्ञाओं से मेरा नामकरण कर डाला मैंनें उनको गूँथ-गूँथ कर सांसों की अर्पण की माला जितना तीखा व्यंग्य तुम्हारा उतना मेरा अंतर मानी एक साथ कैसे रह पाये मन में आग, नयन में पानी। कभी-कभी मुस्काने वाले फूल-शूल बन जाया करते लहरों पर तिरने वाले मंझधार कूल बन जाया करते जितना गुंजित राग तुम्हारा उतना मेरा दर्द मुखर है एक साथ कैसे रह पाये मन में मौन, अधर पर वाणी। सत्य सत्य है किंतु स्वप्न में- भी कोई जीवन होता है स्वप्न अगर छलना है तो सत का संबल भी जल होता है जितनी दूर तुम्हारी मंजिल उतनी मेरी राह अजानी एक साथ कैसे रह पाये कवि का गीत, संत की बानी। ~स्नेहलता स्नेह
This post is visited : 420
✍️🙏✍️