वन्देमातरम्

वन्देमातरम्

उत्तर से ले के दक्षिणी लकीर तक
पुरवा से ले के पश्चिमी समीर तक
सागरों से ले के नदियों के नीर तक
पर्वतों से ले के घाटियों के तीर तक
आत्मा से ले के नश्वर शरीर तक
कन्या कुमारी से ले के कश्मीर तक
चाहे जिन्दा रहें चाहें मर जाएं हम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

सुजलाम् सुफलाम् वन्देमातरम्
मलयज शीतलाम् वन्देमातरम्
गाओ शस्य-श्यामलाम् वन्देमातरम्
सुखदाम्-वरदाम् वन्देमातरम्
वन्देमातरम् एक ऐसा मंत्र है
जिसे गाके भारत हुआ स्वतंत्र है
शहीदों की प्रेरणा का ये है उद्गम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

वन्देमातरम यानि मातृ-वन्दना
मातृ-वन्दना हमारा धर्म है घना
भारत अखण्ड की यही है चेतना
राष्ट्र के सपूतों की यही है चेतना
वन्देमातरम् का जो गायक नहीं
वो यहाँ पे रहने के लायक नहीं
उसे नष्ट करने की खाकर कसम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

‘व’ से वन्देमातरम् वरदाता है
‘न्’ से न्याय प्रियता को उद्गाता है
‘द’ से देश को स्वतंत्रता दिलाता है
‘मा’ से मातृभूमि भारत का त्राता है
‘त’ से तन को ये सावधानी देता है
‘र’ से रक्त हमें स्वाभिमानी देता है
‘म’ से मन को देता स्वदेशी सरगम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

वन्देमातरम् एक राष्ट्रगीत है
बंकिम की लेखनी द्वारा प्रणीत है
वन्देमातरम् आजादी की जीत है
आयतों औ’ मंत्रों से ज्यादा पुनीत है
यह न किसी गोरे का स्वागतगान है
दास्ता के तम का ये दिनमान है
धन्य-धन्य इसे लिखने वाली कलम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

राष्ट्र भक्ति की प्रभा भरी है जिसमें
हमारी प्रकृति सचहरी है जिसमें
हर एक ऋतु सँवरी है जिसमें
संस्कृति हमारी बिखरी है जिसमें
उस गीत के बोलों को बोलते हुए
सारे प्रतिबन्ध अब खोलते हुए
गूँज इसकी न कभी होने देंगे कम
गायेंगे-गायेंगे हम वन्देमातरम्

जिस गीत में बसी हमारी आस्था
जिस गीत में भरी स्वदेश की कथा
जिस गीत में छिपी शहीदों की व्यथा
उस गीत को लें हम कैसे अन्यथा
वह गीत जो है हमें प्राण से बड़ा
कीर्तन, भजन और अजान से बड़ा
उस गीत की छेड़ते हुए सरगम
गायेंगे, गायेंगे हम वन्देमातरम्

~डा.उर्मिलेश शंखधर

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