गांधी जी के बन्दर

गांधी जी के बन्दर

गांधी!
तुम्हारे तीन बन्दर
पूरे लोकतंत्र पर छा गए हैं
उनके थोड़े थोड़े गुण
सबमें आ गए हैं

राजनेता
एक-दूसरे की आवाज़ दबाने की होड़ में
इतना चिल्लाते हैं
कि किसी भी आवाज़ को
सुन ही नहीं पाते हैं।

इंसाफ़ की आँखों पर पट्टी बंधी है
न्याय की देवी आँखें होते हुए भी अंधी है
ये अंधी व्यवस्था
सच का अनुमान लगाने में ही
समय खपाती है
और जिस हक़ीक़त को पूरा देश देख लेता है
उस हक़ीक़त को भी देख नहीं पाती है

और बेचारी जनता
जब अपनी जुबान वोट पेटी में बन्द कर देती है
फिर उसे खोल नहीं सकती है
वह सच देख भी लेती है
वह सच सुन भी लेती है
लेकिन बोल नहीं सकती है

- सुरेन्द्र शर्मा


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