कविता लिखने का सुख

कविता लिखने का सुख

कविता लिखने का सुख क्या है
तुम क्या जानो रामसुखन!

अर्थों के धागे से बुनकर
भाषा के कुछ ताने-बाने
शब्दों की हेरा-फेरी में
रिश्तों की चादर को ताने
कवि जी अपनी ही मस्ती में
रह लेते हैं सदा मगन

दिन भर भूमि दलाली करना
रात कोठरी काली करना
सत्ता को गाली दे लेना
बातें कई सवाली करना
पव्वा और नमकीन लिए जब
आ जाता है नूर लखन

जग बंजारे प्यारे कवि जी
मन के द्वारे हारे कवि जी
धरती से आकाश जोड़ते
सूरज तारे चांद तोड़ते
पीड़ा की गठरी लेकर के
गा लेते हैं दीन भजन

कविता लिखने का सुख क्या है
तुम क्या जानो रामसुखन!

- अजातशत्रु

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