एक से दस तक
- Chirag Jain
- Nov, 10, 2021
- Mahendra Ajanabi
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भरे-भरे शहर के सुनसान चैराहे पर खड़े थे आदमी तीन एक, दो और तीन। एक ने दो से कहा- ‘देख लूंगा।’ दो ने एक से कहा- ‘देख लियो।’ तीन उन दोनों को देख रहा था। उसने तुरंत चार से जाकर कहा- ‘चार! मेरे दोस्त, मेरे यार एक था बेचारा दो ने बेचारे के थप्पड़ मारा।’ चार ने पाँच से जाकर कहा- ‘एक और दो में हो गई कहा-सुनी दोनों ने एक-दूसरे की कमर बड़ी तबीयत से धुनी।’ पाँच ने छह से जा कर कहा- ‘एक ने दो को गोली मारी दो ने एक को गोली मारी वहाँ खड़े तीन, चार, पाँच, छह घायल हो गये। मैं वहीं से भागा-भागा आ रहा हूँ सबके हालात अपनी आँखों से देख कर आ रहा हूँ।’ और दोस्तो! आठ की आँखों में एक विशेष चमक आई उसने नौ से सिर्फ़ इतना कहा- ‘एक हिंदू था दो मुसलमान।’ इस बात पर शहर का एक-एक मकान मकान न रहा बस बन गया था कान। नौ ने दस को देखा देखते ही देखते आदमी नंगा हो गया शहर-भर में साम्प्रदायिक दंगा हो गया! -महेन्द्र अजनबी
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