एक से दस तक

एक से दस तक

भरे-भरे शहर के
सुनसान चैराहे पर
खड़े थे आदमी तीन
एक, दो और तीन।

एक ने दो से कहा- ‘देख लूंगा।’
दो ने एक से कहा- ‘देख लियो।’
तीन उन दोनों को देख रहा था।
उसने तुरंत चार से जाकर कहा-
‘चार! मेरे दोस्त, मेरे यार
एक था बेचारा
दो ने बेचारे के थप्पड़ मारा।’

चार ने पाँच से जाकर कहा-
‘एक और दो में हो गई कहा-सुनी
दोनों ने एक-दूसरे की कमर
बड़ी तबीयत से धुनी।’

पाँच ने छह से जा कर कहा-
‘एक ने दो को गोली मारी
दो ने एक को गोली मारी
वहाँ खड़े तीन, चार, पाँच, छह
घायल हो गये।
मैं वहीं से भागा-भागा आ रहा हूँ
सबके हालात
अपनी आँखों से देख कर आ रहा हूँ।’

और दोस्तो! आठ की आँखों में
एक विशेष चमक आई
उसने नौ से सिर्फ़ इतना कहा-
‘एक हिंदू था
दो मुसलमान।’
इस बात पर
शहर का एक-एक मकान
मकान न रहा
बस बन गया था कान।

नौ ने दस को देखा
देखते ही देखते आदमी नंगा हो गया
शहर-भर में साम्प्रदायिक दंगा हो गया!

-महेन्द्र अजनबी

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