बुढ़ऊ का बियाहु
- Chirag Jain
- Nov, 02, 2021
- Ramai Kaka
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बात न हमते जाति कही जब पचपन के घरघाट भयन तब देखुआ आये बड़े-बड़े। हम सादी से इनकार कीन, सबका लौटारा खड़े-खड़े। सम्पति सरगौ मा राह करै, कुछु देखुआ घूमि-घूमि आये। अपनी लड़की के ब्याहै का, दस-पाँच जने हैं मुँह बाये। पर सबते ज्यादा लल्लबाइ, भे सिउसहाय अचरजपुर के। उइ साथ सिपारिस लइ आये, दुइ चार जने सीपतपुर के। सुखदीन दुबे चिथरू चैबे, तिरबेदी आये घुन्नर जी। कुन्जी पण्डित निरघिन पाँड़े, बड़कये अवस्थी खुन्नर जी। संकर उपरहितौ बोलि परे, तुम्हरे तौ तनिकौ ग्यान नहिन। यह सम्पति को बैपरी भला, तुम्हरे याकौ सन्तान नहिन। तब अकिल न ठीक रही। बात न हमते जाति कही। म्वाँछन का जर ते छोलि छोलि, देहीं के र्वावाँ छारि दीन। भौँहन की क्वारैं साफि भईं, मूड़े मा पालिस कारि कीन। देहीं मा उबटनु लगवावा, फिर कीन पलस्तर साबुन का। अब चमक-दमक मा मातु कीन, हम छैल चिकनिया बाबुन का। दीदन मा काजरु वँगवावा, माथे मा टिकुवा कार-कार। देहीं मा जामा डाटि लीन, मूड़े मा पगिया कै बहार। फिर गरे मा कंठा हिलगावा, जंजीर लटकि आयी छाती। मानौ अरहरि की टटिया मा, लटका है ताला गुजराती। सब कीन्ह्यौं रसम सही। बात न हमते जाति कही जब सँझलउखे पहुँची बरात, कुछु जन आये हमरे नेरे। बइसाखी मुसकी छाँड़ि-छाँड़ि, बतलाय लाग अस बहुतेरे। दुलहा कि दुलहा का बाबा, जेहिं मूड़े मौरु धरावा है। यहु करै बियाहु हियाँ कइसे, मरघट का पाहुनु आवा है। ओंठें पर याकौ म्वाछ नहिंन, यहिं सफाचट्टु करवावा है। बसि जाना दुसरी दुलहिन कै, यहु तेरहीं कइके आवा है। पीनस चढ़ि अइसे सोहि रहे, मानौ मिलिगा कैदी हेरान। कैधों बिरवा के जलथुर ते, यहु झाँकत है खूसट पुरान। बसि यही तिना अपमान भरी, कानन मा परीं बहुत बोली। जी हमरे जी मा च्वाट किहिन, जइसे बंदूकन की गोली। अब जियरा मा जिरजिरी बढ़ी, यहि संकर पण्डित के ऊपर। जो बहुबिधि ते समझाय बुझै, लइ आवा अइसि बिपति हमपर। की जइसि न जाति सही। बात न हमते जाति कही। जब पहरु छा घरी राति बीती, तब भँवरिन कै बारी आई। सब कामु रतऊँधिन नासि कीन, दीदन आगे धुँधुरी छाई। पण्डितवैं बाति बनाय कहा, हमरे कइती दस्तूरु यहै। भँवरिन मा बरु के साथ साथ नेगी दुइ एकु जरूर रहै। उपरहितैं अँगदरु कामु कीन, वहिं दुइ नेगिन का ठढ़ियावा। जिन हमका पकरि पखौरा ते, फिर सातौ भँवरी घुमवावा। सतईं भँवरी मा पाँव म्वार, परिगा बेदी के गड़वा मा। जरि गयन जोर ते उचकि परेन, अधपवा अइस भा तरवा मा। हम बका झिका कहि दीन अरे, ई नेगी हैं बिन आँखिन के। वसि यतना कहतै हमरे मुँह, कुछु घुसिगे पखना पाँखिन के। हम हरबराय के थूकि दीन, उइ अखना पखना रहैं जौन। सब गिरिगे नेगिन के ऊपर, ई करैं रतउँधी चहै जौन। नेगी बोले यह बात कइसि, तुम हमरे ऊपर थूकि दिहेउ। हम कहा कि बदला लीन अबै, तरवा हमार तुम फूँकि दिहेउ। ई बिधि ते लाज रही। बात न हमते जात कही। जब परा कल्यावा सँझलउखे, तब फिर बिपदा भारी आयी। छत्तीसा लइगा चउकै मुलु, पाँयन ते पाटा छिछुवायी। भगवान कीन पाटा मिलिगा, मुलु खम्भा मा भा मूड़ु भट्ट। बटिया सोहराय अड़उखे मा, पाटा मा बइठेन झट्ट पट्ट। पर मुँह देवाल तन कइ बइठेन, बिन दीदन सोना माटी है। तब परसनहारी बोलि परी, बच्चा पाछे यह टाठी है। हम कहा कि हमरेव आँखी हैं, चहुँ अलँग निगाहैं फेरि रहेन। है बड़ी सफेदि पोताई यह, सो हम देवाल तन हेरि रहेन। बसि ई बिधि कइके बतबनाव, टाठी कोधी समुहाय गयेन। बिनु दाँतन चाभी कौरु ककसु, सब पानी घूँट नघाय रहेन। जब दूधु बिलारीं अधियावा, तब परसनहारी हाँकि कहिसि। मरिगइली नथियागाड़ी यह, ऊपर कै साढ़ी चाटि लिहिसि। हम कहा बकौ न जानि बूझि, ना हम यहिका दुरियावा है। घरहू मा सदा बिलारिन का, हम साथेन दूधु पियावा है। ऊपर ते ऊपरचुपरु कीन, भीतर ते जियरा जिरजिरान। जब जाना साढी नहीं रही, तब तौ सूखे आधे परान। पर परसनहारी टाठी मा, जब हाथे ते पूरी डारा। हम जाना आई फिरि बिलारि, मूड़े मा पाटा दइ मारा। सीमेण्ट उखरिगै मूड़े कै, तब रसोइँदारिन रोई है। सब भेदु रतउँधिन का खुलिगा, चालाकी सारी खोई है। ना कच्ची हँड़िया बार-बार, कोहू ते चढ़ै चढ़ाये ते। अधभूखे भागेन समझि गयेन, ना बनिहै बात बनाये ते। अब बिगरी रही सही। बात ना हमते जाति कही। © रमई काका (पं चन्द्रभूषण त्रिवेदी)
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