रात भर चांदनी बड़बड़ाती रही
- Chirag Jain
- Nov, 09, 2021
- Vishveshwar Sharma
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रात भर चांदनी बड़बड़ाती रही हर चकोरी विकल फड़फड़ाती रही तुम न आए बुझाने तृषा प्यार की दृश्य सुधियाँ ये कैसा दिखाती रहीं छा गया पीर पर लाज का आवरण जब कलाई किसी शंक ने थाम ली साधना स्तब्ध थी, कामना रो पड़ी जब निराशा की आशा ने हठ मान ली हर पलक की ललक गिड़गिड़ाती रही ज़िन्दगी की कसक चरमराती रही तुम न आए कलाई मेरी थामने बाँह मेरी ही मुझको सताती रही फिर उमंगों का उठता हुआ कारवां एक अनजान-सी राह में खो गया धड़कनें पूछती हैं दबी साँस से बावरी फिर तुझे आज क्या हो गया भावना की नज़र छलछलाती रही दूर कुण्ठा खड़ी खिलखिलाती रही तुम न आए, ख़ुशी की बरातें लिये मुझको मेरी हँसी ही रुलाती रही हर घड़ी आँसुओं ने संभाला मुझे मृत्यु की हर गली से निकाला मुझे देखकर यों अनाश्रित मेरी साध को कुछ अधूरे से स्वप्नों ने पाला मुझे होंठ पर अनकही थरथराती रही भय भरी आंधियाँ सरसराती रहीं तुम न आए, मुझे अंक में बान्धने मुझको परछाईं मेरी डराती रही -पंडित विश्वेश्वर शर्मा
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