मौत ही है जो बकाया बची है
- Chirag Jain
- Nov, 02, 2021
- Vishal Avasthi
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बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी अब भला मैं इन वसीयतों का क्या करूं? स्वप्न टूटे, टूटी सारी आशाएं अब न कोई मोह- माया बची है यूं लगता है जैसे अब जिंदगी में मौत ही है जो बकाया बची है चक्करा रहा है मद हमारा, पांव भूमि पे धरूं तो कैसे धरूं बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी अब भला मैं इन वसीयतों का क्या करूं। खुल दो द्वार तिजोरियों के अपने उदासियों मन ही मन हमसे कह गई लटक न पाई बेचारियां जो लंक में उनके चाभियां वो सारी खुटियों में टंगी रह गई। हर तरफ से छा गया है अंधेरा चलो भला तो किस ओर चलूं बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी चला तो गया पहन के लाल जोड़ा वो पर अश्रु आंख में उसके भरा रह गया आ न पाए पांव उनके चौखट पर हमारी कलश शादी का हमारा धरा रह गया। विकल्प नहीं अब कोई पास हमारे जंग प्यार की लड़ूं तो किससे लड़ूं बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी -विशाल अवस्थी
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