मौत ही है जो बकाया बची है

मौत ही है जो बकाया बची है

बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी
अब भला मैं इन वसीयतों का क्या करूं?

स्वप्न टूटे, टूटी सारी आशाएं
अब न कोई मोह- माया बची है
यूं लगता है जैसे अब जिंदगी में
मौत ही है जो बकाया बची है
चक्करा रहा है मद हमारा, 
पांव भूमि पे धरूं तो कैसे धरूं
बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी
अब भला मैं इन वसीयतों का क्या करूं।

खुल दो द्वार तिजोरियों के अपने
उदासियों मन ही मन हमसे कह गई
लटक न पाई बेचारियां जो लंक में उनके
चाभियां वो सारी खुटियों में टंगी रह गई।
हर तरफ से छा गया है अंधेरा
चलो भला तो किस ओर चलूं
बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी

चला तो गया पहन के लाल जोड़ा वो
पर अश्रु आंख में उसके भरा रह गया
आ न पाए पांव उनके चौखट पर हमारी
कलश शादी का हमारा धरा रह गया।
विकल्प नहीं अब कोई पास हमारे
जंग प्यार की लड़ूं तो किससे लड़ूं
बन न पाई वो गेह की स्वामिनी हमारी

-विशाल अवस्थी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *