कितने दिन के बाद तुम्हें छू पाये हैं

कितने दिन के बाद तुम्हें छू पाये हैं

कितने दिन के बाद तुम्हें छू पाये हैं
नयनों में है प्यास अधर मुस्काये हैं

देख चान्दनी तुमको बहुत लजाती है
चन्दा की बाहों में ग़ुम हो जाती है
तारे भी लुक-छुपकर देखा करते हैं
और शर्म से रात पिघलती जाती है
कितने दिन के बाद धूप इठलाई है
और पवन ने अपने पंख हिलाये हैं
नयनों में है प्यास अधर मुस्काये हैं

अधरों से अधरों की दूरी मिटने दो
नदिया को सागर से जा कर मिलने दो
सारे बन्धन तोड़ो मन को मुक्त करो
शंखों को सीपों को तट पर खिलने दो
कितने दिन के बाद लहर अंगड़ाई है
और तटों के बन्ध बहुत अकुलाये हैं
नयनों में है प्यास अधर मुस्काये हैं

पलकों में जन्मे सपनों को पलने दें
मौसम को बाँहों में भर के प्यार करें
आओ  सर्जन के पावन पल में उतरें हम
और मिलन को मंगलमय त्योहार करें
कितने दिन के बाद गगन हर्षाया है
और धरा ने अपने कर फैलाये हैं
नयनों में है प्यास अधर मुस्काये हैं

-सुरेन्द्र सुकुमार

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