मुस्कान मिले तो
- Chirag Jain
- Nov, 09, 2021
- Vishveshwar Sharma
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जीवन के इस घेरे में धूप-छाँव के डेरे में पल भर भी मुस्कान मिले, तो ना छोड़ूँ दो आँखों के पहरे में मन के घने अन्धेरे में झूठा भी अरमान मिले तो ना छोड़ूँ सुबह को पकड़ते ही शाम चली आती है ज़िन्दगी की रेत तो फिसलती ही जाती है अपनी ही साँस, जब प्यास बन जाती है आँसुओं के तीर पे नज़र मुस्काती है भले समन्दर गहरे में या फिर रेत के ढेरे में मृगतृष्णा का पान मिले तो ना छोड़ूँ जितने भी आदमी हैं, उतने जहान हैं धूप की गली में ये हवाओं के मकान हैं, नाम कहाँ लिखता है बैठ के ज़मीन पे आज जो महल हैं वो कल के मसान हैं भाँति-भाँति के चेहरे में इतने स्वप्न सुनहरे में एक मन का मेहमान मिले तो ना छोड़ूँ रोज़ नहीं बरखा, न रोज़ ये बहार है पल में बदल जाए वही संसार है आज का ये सुख मत कल पर छोड़ तू कौन जाने कल, इस पार-उस पार है इस ग़रीब के डेरे में उस अमीर के पहरे में छुपा हुआ भगवान मिले तो ना छोड़ूँ -पंडित विश्वेश्वर शर्मा
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