झरोखा

झरोखा

जिसमें से होकर उजियारा रोज़ उतरता आंगन तक
बंद मकानों की दीवारों का वह बड़ा झरोखा हूँ
मुझसे नफ़रत करनेवाले तू भी कोशिश करके देख
मन का बोझ मिटा सकता हूँ मैं खुशबू का झोंका हूँ

-महेश गर्ग बेधड़क

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