कुछ नहीं कहता

कुछ नहीं कहता

हाशिये मौन हैं मजमून कुछ नहीं कहता
क्या सुनें, आदमी का ख़ून कुछ नहीं कहता

रेत उड़ने लगा है, फूंक से निगाहों में
ख़बर किसे है -मानसून कुछ नहीं कहता

बात को बात बता दो, वो बढ़ेगी वरना
बात को छोड़ के क़ानून कुछ नहीं कहता

यूँ उबलता है रगों में फ़रेब का पानी
चीखता है मगर जुनून कुछ नहीं कहता

सुर्ख रेखाएँ उभरती हैं, आज माथे पर
कौन कहता है कि नाखून कुछ नहीं कहता 

- विनय विश्वास

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